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गिलहरी / जगदीश व्योम

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धागे और ताश के पत्ते
सुतली, कागज, रुई, मोंमियाँ
अगड़म-बगड़म लाती।लातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।।जाती।
ठीक रसोईघर के पीछे
शीशे की खिड़की के नीचे
`एस्किमो' सा गोल-गोल घर
चुन-चुन खूब बनाती।बनातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।।जाती।
दो बच्चे हैं छोटे-छोटे
ठीक अँगूठे जिनते मोटे
बड़े प्यार से उन दोनों को
अपना दूध पिलाती।पिलातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।।जाती।
खिड़की पर जब कौआ आता
बच्चे खाने को ललचाता
पूँछ उठाकर चिक्-चिक्-चिक्-चिक्
करके उसे डराती।डरातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।।जाती।
भोली-भाली बहुत लजीली
छोटी-सी प्यारी शरमीली
देर तलक शीशे से चिपकी
बच्चों से बतलाती।बतलातीगिलहरी दिनभर आती-जाती।।जाती। -डॅा. जगदीश व्योम
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