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गरीबों ग़रीबों के लहू से जो महल अपने बनाता है।
वही इस देश की मज़लूम जनता का विधाता है।
जहाँ पत्थर भी ईश्वर है जहाँ गइया भी माता है।
गरजती है बहुत फिर प्यार की बरसात भी करती, ये मेरा और बदली का न जाने के दिल से क्या पता कैसा ये नाता है।
पिघल जाते हैं पत्थर प्यार में सब लोग कहते हैंकहता है जग सारा,
पिघलते पत्थरों पर क्यूँ जमाना तिलमिलाता है।
मैं तेरे प्यार का कंबल हमेशा साथ रखता हूँ,
भरोसा क्या है मौसम का बदल इक पल क्षण भर में जाता है।
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