भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
छोटे -छोटे घर जब हमसे लेता है बाज़ार।
बनता बड़े मकानों का विक्रेता है बाज़ार ।
सारे के सारे अंडे ले लेता है बाज़ार ।
कैसे भी हो इसको सिर्फ़ लाभ से मतलब हैशुद्ध मुनाफ़े से,
जिसको चुनते पूँजीपति वो नेता है बाज़ार ।
ख़ून पसीने से अर्जित पैसों के बदले में,
सुविधाओं का जहर ज़हर हमें दे देता है बाज़ार।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits