गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मेरा माथा उबलती धूप छू के लौट जाती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
1 byte removed
,
04:47, 26 फ़रवरी 2024
सवेरे रोज़ सूरज को मेरी माँ जल चढ़ाती है।
कहीं भी मैं रहा पर आजतक भूखा नहीं सोया,
मेरी माँ एक रोटी गाय की हर दिन पकाती है।
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits