भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
जब हवा रहनुमा हो गई।
नाव ख़ुद नाखुदा ना-ख़ुदा हो गई।
प्रेम का रोग मुझको लगा,
बूँद फिर से घटा हो गई।
लड़ते -लड़ते ये बुज़दिल नज़र,
एक दिन सूरमा हो गई।
उसने दिल से रिहा कर दिया,
माँ ने जादू का टीका जड़ा,
बद्दुआ भी दुआ हो गई।
</poem>