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Kavita Kosh से
बचाये रब ही ऐसे पारखी से।
समय भी भर नहीं पाता है इनकोइसको,सँभलकर सँभल कर घाव देना लेखनी से।
उफनते दूध की तारीफ ‘सज्जन’,
कभी मत कीजिए बासी कढ़ी से।
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