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बचाये रब ही ऐसे पारखी से।
समय भी भर नहीं पाता है इनकोइसको,सँभलकर सँभल कर घाव देना लेखनी से।
हकीकत हक़ीक़त का मुरब्बा बन चुका है,समझ लगा बातों में लिपटी चाशनी से।
उफनते दूध की तारीफ ‘सज्जन’,
कभी मत कीजिए बासी कढ़ी से।
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