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Kavita Kosh से
ख़ुदा को मस्जिद में पा गया जो वो दौड़ मयखाने जा रहा है।
वो जिसने जिस ने माँगी थी सीट मुझसे ये कहके कह के ईश्वर भला करेगा ,
जरा सा आराम पा गया तो मुझी को अब वो भगा रहा है।
दवा से जो ठीक हो रहा था उसे पिलाया पवित्र पानी,
जो दिन में अच्छा भला था कल तक वो रात भर चीखता रहा है।
ख़ुदा का घर सब जिसे समझते वहीं हजारों हुये लापता,