<poem>
क्रांति के लाखों स्वरों में एक स्वर मेरा भी है।
खा रहे नेता जो उसमें उस में आयकर मेरा भी है।
भाग आया मैं वहाँ से क़त्ल होता देखकर,
साथ उसके रह रहा जो वो लवर मेरा भी है।
आप हैं ‘सज्जन’ तो हम भी खुद ख़ुद को कहते हैं वही,
आप जैसा हूबहू देखें कवर मेरा भी है।
</poem>