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Kavita Kosh से
जो भाषण भी पढ़ते लिखा दूसरों का,
वही लिख रहे हैं गरीबों ग़रीबों की किस्मत।
गर अंकुश नहीं हाथियों पे रखोगे, तो उजड़ेगी बगिया मरेगा महावत।
ग़ज़ल में तेरा हुस्न भर भी अगर दूँ,
जब इंसान मिलने लगे बर्फ़ के तो,
नहीं रह गई और चढ़ने की हिम्मत।
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