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जो मिल -जुल के करते बदी की हिफ़ाजत / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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26 फ़रवरी
जो भाषण भी पढ़ते लिखा दूसरों का,
वही लिख रहे हैं
गरीबों
ग़रीबों
की किस्मत।
गर अंकुश नहीं हाथियों पे रखोगे, तो उजड़ेगी बगिया मरेगा महावत।
ग़ज़ल में तेरा हुस्न भर भी अगर दूँ,
जब इंसान मिलने लगे बर्फ़ के तो,
नहीं रह गई और चढ़ने की हिम्मत।
</poem>
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