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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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}}

<Poem>
खोज-खोज हारे हम
::पता नहीं
कहाँ गई अम्मा की चिट्ठी

अम्मा ने उसमें ही
ख़बर लिखी थी घर की
'टूटी है छत अगले कमरे की
सीढ़ी भी पोखर की

'हुई ब्याह-लायक है
::अब तो जानो
बड़के की बिट्टी

'बाबू जी बुढ़ा गए
याद नहीं रहता है कुछ भी
खेत कौन जोते अब
रहता बीमार चतुर्भुज भी

'गाँव के मज़ूर गए
बड़ी सड़क की ख़ातिर
::तोड़ रहे गिट्टी'।

बच्चों के लिए हुई
अम्मा की चिट्ठी इतिहास हि
किंतु हमें लगती वह
बचपन की मीठी बू-बास है

चिट्ठी की महक
::हमें याद है
जैसे हो सोंधी खेतों की मिट्टी ।

</poem>