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|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय
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<poem>
नये अहसास के मंज़र, जवां ख़्वाबों का गुलदस्ता
अँधेरे रास्ते पर लाई हो किरणों का गुलदस्ता

तुम्हारे साथ जो बीते वो लम्हे मुस्कुराते हैं
महकता है मेरी आँखों में उन लम्हों का गुलदस्ता

मेरे बच्चे, मेरी उम्मीद, मेरा घर, मेरा बिस्तर
तुम्हीं ने तो सजाया है मेरी ख़ुशियों का गुलदस्ता

मैं तुमसे एक पल भी दूर ऐसे रह नहीं पाता
न रखता साथ जो अपने हसीं यादों का गुलदस्ता

मेरे मन के कँटीले रास्ते तुमने बुहारे हैं
कि तुमसे ही सँवरता है मेरी बातों का गुलदस्ता
</poem>
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