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<poem>
मेरे गीत सँभाले रखना
गीत न मेरे काम आ सके,
ऐसा अवध रहा जीवन भर
जहाँ न वापस राम आ सके

दर्द, विरह, आँसू, तन्हाई
किसे नहीं है
चाहा मैंने
मेरे घावों से तो पूछो
किसको नहीं
सराहा मैंने

अनगिन पत्र लिखे जीवनभर
लौट नहीं पैगाम आ सके

मेरे गीत अहिल्या बनकर
खोज रहे कबसे
पग-चन्दन
मेरे गीत किसी शबरी-सा
चाह रहे
करना अभिनंदन

बहुत तपे हैं ये जीवन भर
ज़रा देखना शाम आ सके

गीत भटकता जीवन जिसने
पाषाणों में
प्रान भरा है
जिसकी धाराओं पर अबतक
चोटों से
हर घाव हरा है

पर इनका तो ध्येय यही है-
कभी नहीं विश्राम आ सके
</poem>
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