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Kavita Kosh से
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सपने सब सच हो रहे थे
गोद में माँ ।
आहिस्ता आहिस्ता
जब जवां होने लगी मेंमैंसपने भी होते गए भारी।भारी ।तो उन्हें कैद क़ैद करना पड़ा
बक्से में एक
बंध गया में गई मैं जबएक खंभे खम्भे से जा करजाकरदूसरे खंबे में-तब मैंने सोचातो मैं सोचीसच्चा सुख मिले ना सहीया न मिलेलेकिन अपने सपनों के साथ जीनानिराला भी तो है।निरालापन होगा ।उस बक्से को मैं ले आई मैं अपने साथ इधरमेरी नई केद खाने पर।अपने नए क़ैदख़ाने पर ।निहारे सबने उसे निहारा और खुश हुए-सब।सब ।मगर कोई बोला- पहले मेरे कमरे में फिर किसी ने कोई बोला-मेरे अलमारी मेरी आलमारी मेंतो और फिर किसी और ने कहा-मेरे दिल मेंजगह ही नहीं थोड़ा सा थोड़ी सी भी कहीं।कहीं ।
सपनों को दिशा दिखा दी गई
सही जगह उनके।उनकी । अब मेरी कहानी कैद क़ैद होकर रह गई हैइस बंद बक्सा बक्से में ।
बक्से में मेरे साथ
'''ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास'''
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