भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
उनके प्रवर्तक के मौत से !
तुम्हें क्या तुम्हें दिखाई देता है
कहर का वह भयानक रूप,
धोखेबाज़ी की वह तमाम नौटंकी,
अनगिनत बच्चों की बा हो मगर
सन्तान सुख से कोसों दूर हो तुम !महात्मा से के सूरज के तेज के नीचे
छोटा सा दिया बनकर
बुझती चली गईं दिन-ब-दिन तुम ।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,594
edits