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<poem>
अभी छोड़कर तुम न जाओ सुनयने!
अभी जिन्दगी का दिया जल रहा है

तुम्हारे बिना सर्जना क्या रहेगी
करेंगी प्रकट क्या कहो व्यंजनाएँ
द्रवित हो बहेंगे, सभी स्वप्न मेरे
धुलेंगी सभी प्रेममय कल्पनाएं

जिऊँगा तुम्हारे बिना प्राण! कैसे
यही सोच मेरा हृदय गल रहा है

बिछी है मधुर चाँदनी आज भू पर
हवा बह रही, मौन रजनी मनोहर
हृदय धीर खोकर तुम्हें जप रहा है
मिला है प्रणय का मधुर प्राण! अवसर

नहीं प्यास मन की अधूरी रहे अब
रुको स्वप्न मन में अभी पल रहा है

प्रिया! इस जगत की विषम वीथियों में
अगर कुछ अमिट है, यही प्रेम-धन है
नहीं प्रेम-सा है, सुखद कुछ जगत में
न विरहा सदृश प्राण! कोई अगन है

अगर हूँ हृदय में बसा प्राणधन! मैं
ढली शाम-सा क्यों हृदय ढल रहा है
</poem>
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