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{{KKRachna
|रचनाकार=लुईस दे लेओन
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
डाह की वजह से झूठ के सहारे
उन्होंने पाँच साल मुझे जेल में रखा
लेकिन मैं बुद्धिमान था और धन्य है
मेरा अच्छा व्यवहार कि उसकी वजह से
मैं छोड़ आया वो बुरी दुनिया
और अब एक ख़राब सी मेज़ के पास मनहूस घर में
बैठा हूँ मैं बड़े आनन्द के साथ
उस अकेले करुणामयी ईश्वर के साथ
अब
न तो डाह है कोई
न डाह करने वाला ।
1934
'''मूल स्पानी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
'''लीजिए, अब यही कविता रूसी अनुवाद में पढ़िए'''
Луис де Леон
Тюрьма
Здесь ложь и зависть пять лет
Держат меня в заточеньи.
Но есть отрада в смиреньи
Тому, кто покинул свет,
Уйдя от злого волненья.
И в этом доме убогом,
Как в поле блаженства, он
Равняется только с богом
И мыслит в покое строгом,
Не прельщая, не прельщен.
Перевод : В. Парнаха
1934
'''लीजिए, अब यही कविता मूल स्पानी भाषा में पढ़िए'''
Luis de León
En la’ cárcel donde estuvo preso
Aquí la envidia y mentira
me tuvieron encerrado,
dichoso el humilde estado
del sabio que se retira
de aqueste mundo malvado,
y con pobre mesa y casa
en el campo deleitoso
con sólo dios se compasa,
y a solas su vida pasa,
ni envidiado ni envidioso.
</poem>
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|रचनाकार=लुईस दे लेओन
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
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<poem>
डाह की वजह से झूठ के सहारे
उन्होंने पाँच साल मुझे जेल में रखा
लेकिन मैं बुद्धिमान था और धन्य है
मेरा अच्छा व्यवहार कि उसकी वजह से
मैं छोड़ आया वो बुरी दुनिया
और अब एक ख़राब सी मेज़ के पास मनहूस घर में
बैठा हूँ मैं बड़े आनन्द के साथ
उस अकेले करुणामयी ईश्वर के साथ
अब
न तो डाह है कोई
न डाह करने वाला ।
1934
'''मूल स्पानी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
'''लीजिए, अब यही कविता रूसी अनुवाद में पढ़िए'''
Луис де Леон
Тюрьма
Здесь ложь и зависть пять лет
Держат меня в заточеньи.
Но есть отрада в смиреньи
Тому, кто покинул свет,
Уйдя от злого волненья.
И в этом доме убогом,
Как в поле блаженства, он
Равняется только с богом
И мыслит в покое строгом,
Не прельщая, не прельщен.
Перевод : В. Парнаха
1934
'''लीजिए, अब यही कविता मूल स्पानी भाषा में पढ़िए'''
Luis de León
En la’ cárcel donde estuvo preso
Aquí la envidia y mentira
me tuvieron encerrado,
dichoso el humilde estado
del sabio que se retira
de aqueste mundo malvado,
y con pobre mesa y casa
en el campo deleitoso
con sólo dios se compasa,
y a solas su vida pasa,
ni envidiado ni envidioso.
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