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Kavita Kosh से
मैं छोड़ आया वो बुरी दुनिया
और अब वहाँ उस मनहूस घर में एक ख़राब सी पुरानी मेज़ के पास मनहूस घर मेंथी बैठा हूँ जिसके क़रीब मैं बड़े बैठा रहता आनन्द के साथउस अकेले करुणामयी ईश्वर के साथ
अबमुझे वहाँ किसी सेन तो डाह है कोईडाह नहीं थीऔर न ही वहाँ कोई था मुझसे डाह करने वाला ।
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