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Kavita Kosh से
मैं तुम पर इसको मढ़ता हूँ
तुम इसे बिखेरो गेह-गेह ।
है शपथ तुम्हारे तुम्हें करुणाकर की
है शपथ तुम्हें उस नंगे की
जो भीख स्नेह की माँग-माँग