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|रचनाकार=सुरजीत पातर
|अनुवादक=योजना रावत
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कहे सतलुज का पानी
कहे ब्यास की रवानी
अपनी लहरों की ज़ुबानी
हमारा झेलम चिनाब को सलाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
रावी इधर भी बहे
रावी उधर भी बहे
ले जाती कोई सुख का सन्देश सा लगे
इसकी चाल को प्यार का पैग़ाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
जहाँ सजन के क़दम
जहाँ गूँजते हैं गीत
जहाँ उगती है प्रीत
वही जगह है पुनीत
उन्हीं जगहों को हमारा प्रणाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
जब मिलना तो मिलना
गहरा प्यार लेकर
जब बिछड़ना तो
मिलने का इक़रार लेकर
किसी शाम को न अलविदा की शाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
दीवारें हों और ऊपर तस्वीरें
सुंन्दर भी हों दीवारें
पर अन्धी न हों
दरवाज़े - खिड़कियाँ भी हों
दरस - परस का भी रहे इन्तज़ाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
</poem>
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|अनुवादक=योजना रावत
|संग्रह=
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कहे सतलुज का पानी
कहे ब्यास की रवानी
अपनी लहरों की ज़ुबानी
हमारा झेलम चिनाब को सलाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
रावी इधर भी बहे
रावी उधर भी बहे
ले जाती कोई सुख का सन्देश सा लगे
इसकी चाल को प्यार का पैग़ाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
जहाँ सजन के क़दम
जहाँ गूँजते हैं गीत
जहाँ उगती है प्रीत
वही जगह है पुनीत
उन्हीं जगहों को हमारा प्रणाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
जब मिलना तो मिलना
गहरा प्यार लेकर
जब बिछड़ना तो
मिलने का इक़रार लेकर
किसी शाम को न अलविदा की शाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
दीवारें हों और ऊपर तस्वीरें
सुंन्दर भी हों दीवारें
पर अन्धी न हों
दरवाज़े - खिड़कियाँ भी हों
दरस - परस का भी रहे इन्तज़ाम कहना
हम माँगते हैं ख़ैर, सुबह शाम कहना
जी सलाम कहना !
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