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<poem>
क्या बताएँ हाल पंजाब का
उस शरफ़ के सुर्ख गुलाब का
उस बीच से टूटे गीत का
उस बिछड़ी हुई रबाब का ।

वहाँ कोख हुईं काँच की
वहाँ बच्चियाँ मुश्किल से बचतीं
जो बचें तो आग में जलतीं
जैसे टुकड़ा हो क़बाब का ।

हमने खेत में बीजी जो खुशियाँ
क्यों उगीं बन वे ख़ुदक़ुशियाँ
यह रुत है किस मिजाज़ की
यह मौसम किस हिसाब का ।

हम साज़ के तार कस दें
इस रात को दिन में बदल दें
ग़र मोहब्बत मिले हुज़ूर की
ग़र हो जाए हुक़्म जनाब का
क्या बताएँ हाल पंजाब का ।
</poem>
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