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|रचनाकार=निकानोर पार्रा
|अनुवादक=राजेश चन्द्र
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<poem>
क्या ख़ूब औरत है यह क्लारा सैण्डोवाल भी
अल ज़ैन्जॉन डे ला आगुआदा से गाथ और शावेज़ तक
ला कासा फ्रान्सेस्का से ला रेकोवा तक
ला रेकोवा से ला गोटा डे लेचे तक
साल के प्रत्येक कामकाजी दिन
ला गोटा डे लेचे से अल ज़ैन्जॉन डे ला आगुआदा तक
अगर तुम नहीं देखते उसे उसकी मशीन के साथ
सिलाई और सिलाई और फिर सिलाई करते हुए

– परिवार को खाना मेज़ पर चाहिए –
इसका एक ही मतलब है कि वह आलू छील रही है
या रफ़ू कर रही है
..............या पानी दे रही है फूलों को
या धोती जा रही है अनगिनत चड्ढियाँ

मत पूछो, जंगली पेड़ से नाशपाती के बारे में
उसे मालूम है कि उसने एक सनकी से शादी की है
उसकी सेहत ही उसकी इकलौती परेशानी है :

जब वह धागा पिरोती है सूई में
तब सिकोड़ लेती है आँखों को ज़रा सा देखने के लिए
चश्मा काफ़ी महँगा आता है
एक औरत की यही व्याधियाँ हैं...

पर वह नहीं खोती कभी अपना धैर्य :
रंगे हुए कपड़ों के थान के थान
उसके जादुई हाथों से निकलते रहते हैं
वे बदलते रहते हैं सस्ती पतलूनों में

चार आधारभूत बिन्दुओं की तरफ़ बढ़ते हुए
तुम्हें इजाज़त नहीं होती कि तुम अपनी प्रतिष्ठा के नीचे सुस्ता सको
इससे अधिक पीड़ा वहाँ है
कहीं अधिक ऊर्जा चाहिए गृहस्थी को सम्भाले रखने के लिए

ताकि टीटो जा सके समय से हाइस्कूल
ताकि जीवित रह सके वायलेटा
और इन सबके बाद भी उसके पास बचा रहता है समय रोने के लिए

उस युवा और आकर्षक विधवा के पास
जिसे प्रवेश करना है इतिहास में
चिले की सबसे कम भाग्यशाली माँ के तौर पर
और उसके पास अभी भी बचा है समय प्रार्थना के लिए ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र'''
</poem>
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