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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |संग्रह=}} <Poem>ये हमारी तुम्हारी कहां कहाँ की मुलाकात मुलाक़ात है,बादलो!
कि तुम
दिल के करीब क़रीब लाके,बिल्कुल ही
दिल से मिला के ही जैसे
अपने फाहाफ़ाहा-से गाल
सेंकते जाते हो...।
आज कोई जख्म ज़ख़्म इतना नाजुक नाज़ुक नहींजितना यह वक्त वक़्त हैजिसमें हम -तुम
सब रिस रहे हैं
चुप-चुप।
नश्तर-सी
वह चमक
</poem>