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|रचनाकार=रश्मि विभा त्रिपाठी
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1
हम इतना ही चाहें!
हाथ गहे रखना
पथरीली हैं राहें।
2
गंगा का है पानी!
बेटी की जग ने
पर कदर नहीं जानी।
3
कितने छाले पग में
ढूँढे से न मिली
भलमनसाहत जग में।
4
बेमतलब जतन हुआ
अब तो सारा ही,
रिश्तों का पतन हुआ।
5
अपनेपन का किस्सा
अब तो ख़त्म हुआ
बस माँगें सब हिस्सा।
6
है मेल- मिलाप कहाँ
पहले- सा जग में,
हर मन में पाप यहाँ।
7
सबने बस खेल रचा
माही- बालो सा
अब ना वो मेल बचा।
8
अब वो सुर- ताल नहीं
दुनिया में अब वो
सोनी- महिवाल नहीं।
9
जग में है आज नई
रीत कपट की ही
रिश्तों की लाज गई।
10
कब प्रीत निभाते हैं?
एक दिखावे की
सब रीत निभाते हैं।
11
अपनों का दोष नहीं
खेल नियति के सब
करना तुम रोष नहीं।
12
बातों में उलझाते
रिश्ते जीवन की
उलझन कब सुलझाते?
13
रिश्ता ये साँचा है
मौन अधर का भी
तुमने तो बाँचा है।
14
आए थे मोड़ नए
बीच डगर हमको
फिर साथी छोड़ गए।
15
कैसा दिन- रात गिला?
राम तलक को भी
जग में वनवास मिला!
16
मैं तो तेरी राधा!
अपने पथ की तू
ना समझ मुझे बाधा।
17
ना कशिश रही दिल में
दुनिया सिमट गई
अब तो मोबाइल में!
18
जो भी कुछ भरम रहा
टूटा पलभर में,
रिश्तों का करम रहा।
19
तोड़ा नाता सबसे
हर कोई अब तो
मिलता है मतलब से।
20
क्या जादू छाया है!
कल जो अपना था
वो आज पराया है।
21
उसके हर दावे का
सच था बस ये ही
था प्यार दिखावे का।
22
तुममें जौलानी है
तो फिर सच मानो
पत्थर भी पानी है।
23
पग- पग पर खतरे हैं
पर सय्यादों ने
बुलबुल के कतरे हैं।
24
बेड़ी में जकड़ गए
कैसी किस्मत थी
मिलते ही बिछड़ गए।
25
कोयलिया कूक उठी
जाने क्यूँ उस पल
जियरा में हूक उठी।
26
कब साथ निभाते हैं
कहने भर के ही
सब रिश्ते- नाते हैं!
27
दिन कितने हैं बीते
अब तो आ जाओ
मैं हारी, तुम जीते।
28
ये अजब कहानी है
रिश्तों में अब तो
बस खींचा- तानी है।
29
ये दिल का लग जाना!
शम्मा से पूछो
क्यों जलता परवाना?
30
है कौन ख़ुदा जाने!
जिसने बदल दिए
अब चाहत के माने।
-0- '''जौलानी=उमंग ,उत्साह'''
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|रचनाकार=रश्मि विभा त्रिपाठी
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1
हम इतना ही चाहें!
हाथ गहे रखना
पथरीली हैं राहें।
2
गंगा का है पानी!
बेटी की जग ने
पर कदर नहीं जानी।
3
कितने छाले पग में
ढूँढे से न मिली
भलमनसाहत जग में।
4
बेमतलब जतन हुआ
अब तो सारा ही,
रिश्तों का पतन हुआ।
5
अपनेपन का किस्सा
अब तो ख़त्म हुआ
बस माँगें सब हिस्सा।
6
है मेल- मिलाप कहाँ
पहले- सा जग में,
हर मन में पाप यहाँ।
7
सबने बस खेल रचा
माही- बालो सा
अब ना वो मेल बचा।
8
अब वो सुर- ताल नहीं
दुनिया में अब वो
सोनी- महिवाल नहीं।
9
जग में है आज नई
रीत कपट की ही
रिश्तों की लाज गई।
10
कब प्रीत निभाते हैं?
एक दिखावे की
सब रीत निभाते हैं।
11
अपनों का दोष नहीं
खेल नियति के सब
करना तुम रोष नहीं।
12
बातों में उलझाते
रिश्ते जीवन की
उलझन कब सुलझाते?
13
रिश्ता ये साँचा है
मौन अधर का भी
तुमने तो बाँचा है।
14
आए थे मोड़ नए
बीच डगर हमको
फिर साथी छोड़ गए।
15
कैसा दिन- रात गिला?
राम तलक को भी
जग में वनवास मिला!
16
मैं तो तेरी राधा!
अपने पथ की तू
ना समझ मुझे बाधा।
17
ना कशिश रही दिल में
दुनिया सिमट गई
अब तो मोबाइल में!
18
जो भी कुछ भरम रहा
टूटा पलभर में,
रिश्तों का करम रहा।
19
तोड़ा नाता सबसे
हर कोई अब तो
मिलता है मतलब से।
20
क्या जादू छाया है!
कल जो अपना था
वो आज पराया है।
21
उसके हर दावे का
सच था बस ये ही
था प्यार दिखावे का।
22
तुममें जौलानी है
तो फिर सच मानो
पत्थर भी पानी है।
23
पग- पग पर खतरे हैं
पर सय्यादों ने
बुलबुल के कतरे हैं।
24
बेड़ी में जकड़ गए
कैसी किस्मत थी
मिलते ही बिछड़ गए।
25
कोयलिया कूक उठी
जाने क्यूँ उस पल
जियरा में हूक उठी।
26
कब साथ निभाते हैं
कहने भर के ही
सब रिश्ते- नाते हैं!
27
दिन कितने हैं बीते
अब तो आ जाओ
मैं हारी, तुम जीते।
28
ये अजब कहानी है
रिश्तों में अब तो
बस खींचा- तानी है।
29
ये दिल का लग जाना!
शम्मा से पूछो
क्यों जलता परवाना?
30
है कौन ख़ुदा जाने!
जिसने बदल दिए
अब चाहत के माने।
-0- '''जौलानी=उमंग ,उत्साह'''
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