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|रचनाकार=सानु शर्मा
|अनुवादक=सुमन पोखरेल
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<poem>
मालूम है
आकाश चाहे जितना भी झुक ले
धरती को कभी भी छू नहीं सकेगा,
मालूम है
चाँद को जितना पसंद करने पर भी
वो आगोश में कभी भी आ नहीं सकेगा।

मालूम है
दिल का अंधियारा
किसी उजियाले से मिट नहीं सकेगा,
मालूम है
किसी के साथ से यह अकेलापन छूट नहीं सकेगा ।

फिर भी दिल तो आखिर दिल ही है
एक पल की खुशी की कामना में
हजारों दुख के साथ उलझता रहता है
चाँद की चाह में जलजल के रातभर
ओस बनकर गिरता रहता है,
किसी पुराने घाव की तरह
उभरता रहता है, दुखता रहता है।

मालूम है
पूरी नहीं होंगी दिल की सभी ख्वाहिशें,
फिर भी दिल तो आखिर दिल ही है
अनेक कामनाएँ करता रहता है
ऊपर चढ़ता रहता है, नीचे गिरता रहता है।

मालूम है
यह किनारा उस किनारे को छू नहीं पाता।

मालूम है, लेकिन
दिल तो आखिर दिल ही है।
०००

[[मनको कथा / सानु शर्मा|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ]]

</poem>
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