भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatKavita}}
<poem>
शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण! दीप को अपना सब कुछ मान  दीप निशा का साथी बनता तम से घिरा तनिक ना डरता तूफ़ानों से आँख मिलाए संग हवा के झूमे जाए पर ना जाने प्रिय की पीर प्रेम का कर न सका प्रतिदान शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण! दीप को अपना सब कुछ मान प्रेम तुम्हारा अतिशय प्यारा तन-मन तुमने मुझ पर वारा प्रेम पाश में मैं बँध जाऊँ फिर कैसे कर्त्तव्य निभाऊँ तम की सीमा पर सुन प्यारे प्रहरी सजग तू मुझको जान शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण! दीप को अपना सब कुछ मान  जब तक मुझमें ज्योति है ये राह दिखाना ही , बस , ध्येय जीवन पल-पल बीता जाता पल में हँसता जी भर आता मैं तो तब तक जलता जाऊँ जब तक आ ना जाये न जाए विहान  शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण! दीप को अपना सब कुछ मान।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,594
edits