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दूर हूँ, बहुत दूर
ख्वाहिस कर के इच्छा करने पर भी नहीं छू सकतामैं इम्कानात संभावनाओं के उफ्क को ।क्षितिज को।पार नहीं कर नहीं सकताजिन्दगी ज़िंदगी के मुस्किल कठिन पुलों को ।को।
दब गया हूँ शोक के गुम्बद-ए-मातम के निचे। नीचे।अँधियारा अंधेरा छा गया है लुम्बिनी ।लुम्बिनी।आँखो आँखों में सिर्फ ख्वाबेँ सिर्फ़ सपने तैर रहे हैँ अमन के ।  जिस लम्हा तुम ने इमान को दफना दीबेइमानी के कब्रस्तान पर,उसी लम्हा हो गयी है मौत मेरे बुद्ध की । हैं शांति के।
जिस पल तुमने
ईमानदारी को दफ़ना दिया
बेमानी के कब्रिस्तान में,
उसी पल हो गई है मौत
मेरे बुद्ध की।
०००
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