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{{KKRachna
|रचनाकार=महेश उपाध्याय
|अनुवादक=
|संग्रह=आदमी परेशाँ है / महेश उपाध्याय
}}
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<poem>
धरती के दूध उतर आया ।
खेत-खेत हरियाली
कर पूरी रखवाली
बालों में बीज नज़र आया ।
फूटा है पोर - पोर
हरा दूध ओर - छोर
मइय्या का प्यार उभर आया ।
</poem>
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|संग्रह=आदमी परेशाँ है / महेश उपाध्याय
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धरती के दूध उतर आया ।
खेत-खेत हरियाली
कर पूरी रखवाली
बालों में बीज नज़र आया ।
फूटा है पोर - पोर
हरा दूध ओर - छोर
मइय्या का प्यार उभर आया ।
</poem>