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|रचनाकार=वानिरा गिरि
|अनुवादक=सुमन पोखरेल
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<poem>
तुमने छुआ
शुद्ध हो गयी मैं
यह शुद्ध होना –
बारह वर्षों की गहरी नींद से जागकर
सुनकेशी रानी का शीतल, सुगंधित सरोवर में स्नान करना है,
अनुभूतियों के अनगिनत असंख्य असर्फियों को
दिल की गुल्लक में खटक-खटक गिराना है
किनारे-किनारे गेंदा और गोदावरी के फूलों का
नागवेली से गुजरना है
आस्था से मढ़ी हुई जलहरी से
हर एक बूँद विश्वास की, टपक-टपक कर गिरना है।

तुमने छुआ
शुद्ध हो गयी मैं
यह शुद्ध होना –
अमावस्या की रात चाँदनी में नहा लेना है
लगातार बहते रहने के लिए बागमती की लहरों में
चाँदनी की झर से सुनहरी किरणों का गिरना है,
उन सुनहरी मिश्रण को कोई स्निग्ध सुंदरी का
अपनी सुकोमल बदन में डालने के लिए
उठाकर घड़े में भरना है
पता नहीं
इन सभी समवेत स्पर्शों से
कौन शुद्ध हुआ है –
चाँदनी शुद्ध हो गयी
बागमती शुद्ध हो गयी है, या स्निग्ध सुन्दरी –

तुमने छुआ
शुद्ध हो गयी मैं
यह शुद्ध होना –
राम के स्पर्श से शिला-पत्थर गौतमी बनना है
शबरी की जूठी बेर से
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की मुख-शुद्धि होना है
लेकिन पता नहीं –
प्रकांड विद्वान इसकी व्याख्या करेंगे कैसे –
अक्षय-भक्ति से राम शुद्ध हुए हैं, या शबरी?
०००

</poem>
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