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प्लांचेट की टेबुल / बैरागी काइँला / सुमन पोखरेल
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03:29, 7 सितम्बर 2024
उठ न पाएँ उन लकीरों पर बर्लिन की दीवारें!
आहा
आह
! थक गया हूँ!
मैं थोड़ी देर विश्राम करना चाहता हूँ
कोहने से दबाकर वर्तमान को टेबुल पर,
विगत को बाँधकर पलकों से आँखों में
थोड़ा सा !
आह ! थक गया हूँ!
Sirjanbindu
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