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मृत्यु, आज .....जिन्दगीको छेवैनिर भएर गयो !
०००
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[[हाट में इकट्ठे लोग / बैरागी काइँला / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक करके इस कविता का एक हिंदी अनुवाद पढ़ा जा सकता है।]]
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