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<poem>
तुम्हारे साथ
मेरा कॉन्ट्रैक्ट अफेयर शुरू होने का दिन
मैंने तुम्हें –
दरवाजे में रखे कलश पर आँखें जड़कर स्वागत किया
आज हमारी सह-यात्रा का आखिरी दिन
मैंने तुम्हें –
उसी दरवाजे की देहलीज़ पर अपना दिल बिछाकर विदा किया ।

सोचती रही...
कैसे तुम
मेरे दिल को कुचलते हुए चल सके!

कभी—
आँखों के रास्ते दिल में उतरने की कोशिश करने पर
यह दिल तुम्हें बार-बार अपना हाथ बढ़ाकर रोकता रहा
आज उसी दरवाजे से निकलकर मेरी आँखों से तुम्हारा ओझल होने तक
सिर्फ हाथ ही तुम्हें विदा कर सका ।

सोचती रही...
अन द स्पॉट जिये जाने वाली जिंदगी
क्या सिर्फ एक प्रयोग भर है!
इस वक्त -
कमरे की आलमारियों में तुम्हारी यादें
कहीं कपड़ों की तरह तह-तह में सजकर बैठी हुई हैं
कहीं किताबों की शेल्फ में तुम्हारी यादें
किताबों की तरह सिर्फ किनारे भर दिखकर सजी हुई हैं ।

सोचती रही...
जिंदगी की आलमारियों में यादें
कब तक यूँ तह-तह में बंधी पड़ी रहेंगी!

जब यही मन केंद्र बिंदु होकर
मेरी दुनिया में भूकंप आया तो;
कमरे की आलमारियों और शेल्फों से यादें
एक-एक करके ज़मीन पर छितरकर बिखरने लग गई
और तब महसूस हुआ -
मैं तो अपनी यादों को भी
कहीं सलीके से समेट न सकने वाली हो गई हूँ।
और ज़मीन पर बेतरतीब बिखरी यादें
खुले आसमान में आज़ादी से उड़ सकें, सोचकर
मैंने उलट कर ज़मीन को ही आसमान बना दिया...

हैलो जिंदगी!
इस वक्त यादें भी इतनी खूबसूरत बन गई हैं कि
अब मेरे पास सिर्फ खाली आसमान ही नहीं,
यादों के साथ तारों की बारात भी होगी!!

हैप्पी ज़िंदगी टू मी!
हैप्पी एग्ज़िस्टेंस टू मी!!

०००
</poem>
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