भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जलना / प्राणेश कुमार

1,549 bytes added, 19:41, 18 सितम्बर 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राणेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्राणेश कुमार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वे जलते हैं हमें देख कर
जलते हैं
लेकिन सूरज की तरह नहीं
मैं चाहता हूँ वे जलें
सूरज की तरह
लेकिन सूरज
उन्हें पसंद ही नहीं।

उगते सूरज की किरणों से
उनकी आँखें चौंधिया जाती हैं
वे बंद हो जाना चाहते हैं
अपनी अँधेरी कोठरी में।

पाल रखे हैं उन्होंने
जहरीले साँप
कीड़े-मकोड़े-बिच्छू
रहते हैं वे
अँधे सीलन भरे कमरे में
काट खाना चाहते हैं
हर आगंतुक को।

झूमते पेड़,
बहती हवा,
चिड़ियों की चहचहाहट,
बहता पानी
उन्हें पसंद नहीं
उन्हें पसंद है
अपने कमरे की दुनिया।

वे जलते हैं हमें देख कर
मैं कहता हूँ
जलो सूरज की तरह
लेकिन सूरज
उन्हें पसंद ही नहीं है।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,495
edits