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|रचनाकार=प्राणेश कुमार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
पहाड़ियाँ रखवाली करती हैं
मेरे गाँव की चारों ओर से
पलाश फ़ैल जाते हैं गाँव के आँचल में
पगडंडियों में टहलती है शीतल हवा
महुए की मादक सुगंध पसरती है पूरे गाँव में
यह हमारे लिए भोजन है
क्या इसे जान पाएँगे वे
जो काट रहें हैं इन्हे लगातार।
वे आते हैं हमारे गाँव में हमारे बनकर
वे आते हैं पहाड़ियों का सीना चीरकर
तहस नहस करते हैं हमारे गाँव को
वे बड़े निर्मम हो जाते हैं
हमारी आज़ादी को छीनना चाहते हैं वे,
वे रौंदते हैं हमारे जंगलों को - पेड़ों को
लाल - लाल पलाश वन को
फिर
हमारे गाँव के छायादार रास्तों पर
तपने लगता है सूरज।
</poem>
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|संग्रह=
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पहाड़ियाँ रखवाली करती हैं
मेरे गाँव की चारों ओर से
पलाश फ़ैल जाते हैं गाँव के आँचल में
पगडंडियों में टहलती है शीतल हवा
महुए की मादक सुगंध पसरती है पूरे गाँव में
यह हमारे लिए भोजन है
क्या इसे जान पाएँगे वे
जो काट रहें हैं इन्हे लगातार।
वे आते हैं हमारे गाँव में हमारे बनकर
वे आते हैं पहाड़ियों का सीना चीरकर
तहस नहस करते हैं हमारे गाँव को
वे बड़े निर्मम हो जाते हैं
हमारी आज़ादी को छीनना चाहते हैं वे,
वे रौंदते हैं हमारे जंगलों को - पेड़ों को
लाल - लाल पलाश वन को
फिर
हमारे गाँव के छायादार रास्तों पर
तपने लगता है सूरज।
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