भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निश्चित है सूरज / प्राणेश कुमार

1,892 bytes added, 19:46, 18 सितम्बर 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राणेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्राणेश कुमार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ये कहते हैं - सलाम करो
ये कहते हैं - अपमान सहो
इनके तलुओं को दबाते बिता दो सारी ज़िन्दगी
कितना कठिन है रहना इनके बीच !

आजादी है इनके लिए - हमें क्या
हमारी रक्षा - सुरक्षा हत्यारे करते हैं
अपनी शर्तों पर
इनकी शर्तों में शुमार हैं
हमारी सपनों से भरी आँखें
ये देते हैं प्यार की नई परिभाषा
ये कहते हैं इनकी आज्ञा से
किया जाए प्यार भी
सोचते हैं ये
इनकी आज्ञा के बिना
पत्ता भी नहीं डोलेगा
चिड़िया नहीं चहकेगी
फूल नहीं खिलेंगे
सुबह नहीं होगी।

हमारी झोपड़ियों पर पड़ती हैं इनकी परछाइयाँ
लम्बी - लम्बी , काली - काली परछाइयाँ
सान्ध्यकालीन परछाइयाँ
परछाइयों से डरते हैं हमारे बच्चे
उन्हें लगता है
अँधेरों से घिरी रहेगी पूरी आबादी
वे नहीं जानते
कि सूरज जागेगा पूरी आभा से।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,495
edits