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|रचनाकार=विश्राम राठोड़
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बना स्याही सागर पानी लिखूं, लिखूँ लेखनी बना वृक्ष अनेक
मेरे गुरु की महिमा वहाँ तक है जहाँ तक है एक छोर धरती दूसरा है आकाश अनेक
सात रंगों-सी इस धरती पर हम तो आज भी है अवशेष
गुरूओं के कद को तो देवता भी नमन करते हैं
तभी तो गुरु ही सम रूप हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश
</poem>
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बना स्याही सागर पानी लिखूं, लिखूँ लेखनी बना वृक्ष अनेक
मेरे गुरु की महिमा वहाँ तक है जहाँ तक है एक छोर धरती दूसरा है आकाश अनेक
सात रंगों-सी इस धरती पर हम तो आज भी है अवशेष
गुरूओं के कद को तो देवता भी नमन करते हैं
तभी तो गुरु ही सम रूप हैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश
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