भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=काजल भलोटिया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=काजल भलोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
क्योंकि इन हथेलियों की आड़ी तिरछी रेखाओं में
चटकीले रेशमी धागे-सी उलझी
एक लकीर ऐसी छुपी थी
जो तुम्हारे प्रेम की थी...
अपनी सूनी बेरंग हथेली देखते वक्त
जब भी मेरी नज़र उस लकीर पर पड़ी
आभास-सा हुआ...ये तुम हो
जिसमें छुपे रंग तुम्हारे प्रेम के हैं
जानते हो,,
ये रंग इतने पक्के और गहरे थे
की वक़्त की मार में धुलकर भी
कभी फीके नहीं पड़े...
इन रंगों की प्रबलता और गहराई देख
आज ये अहसास हुआ
की ये मेरी बची ज़िन्दगी के
वो ख़ुशनुमा रंग है
जो अगले जन्म तक के लिये
तुम्हारे ही रंग में रंग चुके हैं
उलझी लकीरों में छुपे चटकीले रंगों के
इस सुंदर मेल से अब मैंने जाना
मेरे सारे रंग अब तुमसे हैं।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=काजल भलोटिया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
क्योंकि इन हथेलियों की आड़ी तिरछी रेखाओं में
चटकीले रेशमी धागे-सी उलझी
एक लकीर ऐसी छुपी थी
जो तुम्हारे प्रेम की थी...
अपनी सूनी बेरंग हथेली देखते वक्त
जब भी मेरी नज़र उस लकीर पर पड़ी
आभास-सा हुआ...ये तुम हो
जिसमें छुपे रंग तुम्हारे प्रेम के हैं
जानते हो,,
ये रंग इतने पक्के और गहरे थे
की वक़्त की मार में धुलकर भी
कभी फीके नहीं पड़े...
इन रंगों की प्रबलता और गहराई देख
आज ये अहसास हुआ
की ये मेरी बची ज़िन्दगी के
वो ख़ुशनुमा रंग है
जो अगले जन्म तक के लिये
तुम्हारे ही रंग में रंग चुके हैं
उलझी लकीरों में छुपे चटकीले रंगों के
इस सुंदर मेल से अब मैंने जाना
मेरे सारे रंग अब तुमसे हैं।
</poem>