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विसर्जन / दीपा मिश्रा

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जखैन नोर लेल बहबाक बाट नै बचैत छै
ओ घाम संग मिझ्झर भ' जाइए
आँखिके दोष देब मोसकिल जखैन भागे
बहीर भ' चुकल होइ

पिंड श्याम रंग ककरा सोहाइत छै
आ मुँह उघारिते
कहि देल गेलै जे करिया काजरक कोनो काज नै
एहि मुँह पर त' डिठौनो गोर लगतै
ठहक्काक ज़ोर छाती धधड़ा देलकै

घोघ कनेक आर नम्हर भ' गेलै
गुण कहाँ देखलकै किओ
विधाताक गढ़ैनक मात्र उपहास करैत रहल
समयक संग नोर सुखा जाइत छै
ओहिना जेना सुखायल रहे
एहि गामक कमलाक धार

भरि दिन इजोत रहितो लोक
रातुक बेगरतासँ प्रतीक्षा करैये
एकटा कारी ठोप लगा माए
नेनाकेँ दुनिया भरिक नजरिसँ बचेबाक लेल निचेन भ' जाइए
कहू त' कारी कोना भेलै खराब

कृष्णक कारी रंग कतेको गोपिकाक अन्तरात्मामे वास करैत छल
केश कारी,मेघ कारी, काजर कारी,
कौआ कारी त' कोइलिओ कारिए होइए

कारी कारी मोनमे अनुगूंज होमय लागल
सोनाक ओहि पदकक की कोनो मोल नै ?
की ज्ञानकेँ करिया रंग झांपि देलक?
नै रहबाक चाही एकहु छन ओतय जतय आत्माक बरजोरी बलात्कार हुए
जतय गुणक कोनो मोजर नै

कहैत छलीह पितामही नेनहिसंँ आमक कोइलिकेँ
उछालैत, 'कोइलि कोइलि बुच्चीक सासुर कतय?'
आ कोइली दू क्षण हवामे नाचि ठामहि खसि पड़ैत छल

आब बुझलियै ओ किएक कोनो दिस नहि जाइत छल
माए पितियाइन पितामही कहैत रहली नै पोछू सेनुर
नै बहाउ गौरी
भाग छी अहाँक
एहन काज किओ करैये

ओ बान्हिकेँ सरबामे नेने गेलीह सुपारीक गौरी संग गुआ माला लहठी
बहा देलैनि सगर्व पोखरिक बीच ठाढ़ जाइठ लग जाके

खंडित त' देवताक सेहो लोक पूजा नै करैये
विसर्जित क' देल जाइत छथि
हमर त' हृदय खंडित भेल अछि
ओकरा किएक हम सम्हारी

आगाँ बाट बड पैघ छै
कारी देह पर पड़ैत सूर्यक पहिल किरण कुंदन सन चमकय लागल
ज्ञानक सूर्य अकास संग मोनकेँ सेहो जगजियार क' देने छल
</poem>
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