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चुप्पी / दीपा मिश्रा

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<poem>
आइ अहाँ सब चुप छी
असकर बजैत बजैत संभव अछि
एक दिन हमहूँ चुप भ' जाएब

ओहुना एक दिसाह बजनिहार लेल
समाज बहुत रास शब्द अपन शब्दकोशमे भरने अछि
जाहिमे सबसँ प्रचलित 'बताह'

हमरो भ' सकैये अहाँ सब
आइ ने काल्हि बताहक
नामसँ पुरस्कृत करब
हम अपनाकेँ एखनेसँ चुप करबाक प्रयास शुरू क' देलौं

जल्दिए ओ भ' जाएत
किएक त' हम जे चाहैत छी
से हम करिते टा छी

हम चुप रहबाक
अनवरत प्रयास क' रहल छी
दूर मंदिरक घंटी सुनि हम
चौंकि जाइत छी

किओ चिचियाइत सुनैये
कतौ किओ देखा त' नै रहल
की अहाँके पता अछि?
</poem>
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