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सगर राति दीप जरे / दीपा मिश्रा

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जेना जेना भोरक ताराकेँ उगबाक समय आबि जाइए
हमर देह तेना तेना शिथिल होइत जाइए
इजोतक चरम धरि पहुँचलाक उपरांत एक दिस स्नेहक नेहक स्रोत सुखाइत जाइए
त' दोसर दिस मोनक बाती घटैत जाइए
हमर अपनहि इजोत हमरा चकाचौंध क' हमरहि अन्हार दिस ठेल दैये
थड़थड़ाइत हम भोरुकबा देखबाक आससँ भरल
अपनाकेँ मिझेबासँ बचेबाक प्रयास करैत छी
ज्ञानक पोथी चारूकात छिड़ियाएल अछि
हम सबटाकेँ समेटय चाहैत छी
मुदा काँपैत हाथसँ छूबासँ भय होइए जे कहिया धरि
ताबत जेना पोथी किछु कहैत बुझाइये
ओकर अवाज हमर भीतर जेना संचार करैये
'ई क्षणकेँ उपयोग क' ले
इजोत,अन्हार...मान,अपमान...मोह ,उपराग...देह... दुनिया चेतन,अचेतन कथू केर मोल नहि रहत
एक दिन त' सबकेँ मिझेबाक छै
तखैन तो किएक मोनकेँ छोट करैं छैं
ज्ञानक इजोत चारूकात पसरय
सगर राति हमर दीप जरय
सगर राति हमर दीप जरय'
</poem>
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