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प्रायश्चित / दीपा मिश्रा

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दूर ओहि पहाड़क जतय छांह पड़ैत छै
ओतय हम अहाँसँ भेंट करब
कहिया नहि बूझल
इहो कहब जे एहि देह आ मोन संग नै करब

ई देह त' कतेको बेर धांगल जा चुकल
अनकर व्यवहार कएल वस्तु
कोना अहाँके अपर्ण करब
आ मोनक त' पुछबे जुनि करू

ओकर त'टूटैत टूटैत ततबा खंड भ' चुकल कि समेटनैओ
कठिन
ओहिसँ नीक ओकरा हम बीछिके कतौ भँसा आबी

हम आएब चमकैत नब देह धारण क' निर्दोष निष्कलंक मोन संग
मुट्ठीमे भरने अहाँ लेल
कचनार,जूही, पारिजात
जकर सुवाससँ महमह करत दिगंत

अहाँक सन्निकट अबिते
हम ओहिना हल्लुक भ'जाएब जेना होइए मेघ भ' जाइए धरतीकेँ अपन अथाह जलराशिक भार सौंपिके

कहबी छै जे जीबैत प्रेम नहि बुझि पबैये लोक
मुदा हम त' बुझलौं
हमर जीवन त' प्रेमक रंगसँ तेहन ढोरल रांगल रहल जे देखि
आन इर्ष्या करैत छल

डाहक नजरि बड खराब होइत छै
जाहि पोखरिक पानिमे
श्रृंगार क' निकहा नुआ पहिरने
गर्वसँ अगराइत अपनाकेँ आइधरि देखैत रहैत छलौं
ओहिमे त' किओ दोसर
दूरसँ ढे़पा मारि हमर सुन्दर सहेजल गर्वकेँ फोरि देलक

आब राति दिन ओकर घावक पीज बहैत रहैये
सुन्न भेल हृदयसंँ ओकरा पोछैत रहैत छी
ओना अहूँ हमरा किएक भेटब
किओ नहि भेटत ओतय

हमर अनगिनत दोष हमरा ततेक भारी क' देलक जे चारिओ डेग चलब आब कठिन
रहय दिऔ
हम एतहिसँ अपन प्रभुकेँ निमित्त सब भाव मेघक एक टुकड़ी संग पठा देब

आर दोसर टुकड़ी बनि उड़ैत
पहाड़सँ टकराकेँ गरजब
ओ हमर आकुल हृदयक चीत्कार रहत
ओ अवाज मात्र अहींटा सुनि सकब

मेघ पिघलिके बरसि जाएत
पानिक अछारमे दहो बहो सब बहि जाएत
शरीर,मोन,आत्मा आ
मिलि जाएत सुरसरिमे

जन्म जन्मांतर के अपन सबटा पुण्य हम एतय छोड़ि
अपना संग बहा लेने जाएब
सबटा कालुष्य
जकरा बिना कएनो
एखनहुंँ हम नित्य प्रायश्चित करैत छी
</poem>
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