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बस राति बचत / दीपा मिश्रा

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<poem>
जे आइ प्रसिद्ध छथि
ओ बिसरा देल जेतैथ
जे जागल छथि ओ
चिर निद्रामे सुति रहतैथ
पुरान रस्ता सब पर उगि आओत
पाकड़िक बड़का बड़का गाछ
सबटा मार्ग बन्द भ' जाएत
नदी जे एहन तांडव देखा रहल
सुखाके दूर अकाशमे बिला जाएत
चन्द्रमा टूटि के खसत आ छहोछित भ'
छाउर बनि माटिमे मिलि जाएत
चिड़इ चुनमुनी मात्र कथामे बसत
आ फूलक सुगंधि मात्र स्मृतिमे
डोंगीकेँ उनटा क'
ओहिपर बैसल एकटा नेना
पुरना खुरचनकेँ हाथमे लेने
उनटा पुनटाके देखैत थाकि हारिकेँ
तपैत बालू पर सुतिकेँ
ओहि समुद्रक स्वप्न देखत
जकरा द' ओ कहिओ खिस्सामे सुनने छल।
</poem>
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