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18:14, 19 अक्टूबर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपा मिश्रा
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विश्वक मानचित्र लेने
हमर बेटी ताकि रहल
ओ सुरक्षित जगह
जतय हम सब जा सकी
ओ हमरा पुछैये एकटा देश देखा
कि एतय फूल हेतै,तितली हेतै,झरना हेतै, पहाड़ हेतै
नीक नीक मनुख हेतै
अन्य सब चीज द' हमरा बूझल
ओहि देशमे जे भेटतै ओकरा
मुदा नीक मनुख लेल
हम चुप्प भ' जाइत छी
ओकर माथ हसोंथि के
छातीसँ लगा लैत छी
दू ठोप नोर ओकर केश पर खसि पड़ैये
सोचैत छी
हमहूँ आब कतेक दिन मनुख रहि सकब
किएक ने गेलौं
युद्ध कखनो शुरू भ' सकैये
</poem>