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{{KKRachna
|रचनाकार=को उन
|अनुवादक=कुमारी रोहिणी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
त्याग दो सब कुछ ऐसे
जैसे फूल झड़ रहे हैं ।
जाने दो सब कुछ को ऐसे ही:
शाम की लहरें किसी को भी अपने पास नहीं रहने देतीं ।
समन्दर में लहरें
जेली मछली,
फ़िली मछली,
समुद्री स्क्वर्ट
रॉक मछली
चपटी मछली, समुद्री बैस
बैराकुडा
नानी के हाथ वाले पंखों जैसी दिखने वाली चपटी मछली,
और उसके ठीक नीचे तल में समुंद्री रत्नज्योतियाँ।
कहना ज़रूरी नहीं रह गया कि
जीवन, मृत्यु के बाद भी अनवरत चलता रहता है ।
इस पृथ्वी पर और अधिक पाप होने चाहिए ।
बसन्त बीत रहा है ।
'''मूल कोरियाई भाषा से अनुवाद : कुमारी रोहिणी'''
</poem>
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|अनुवादक=कुमारी रोहिणी
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त्याग दो सब कुछ ऐसे
जैसे फूल झड़ रहे हैं ।
जाने दो सब कुछ को ऐसे ही:
शाम की लहरें किसी को भी अपने पास नहीं रहने देतीं ।
समन्दर में लहरें
जेली मछली,
फ़िली मछली,
समुद्री स्क्वर्ट
रॉक मछली
चपटी मछली, समुद्री बैस
बैराकुडा
नानी के हाथ वाले पंखों जैसी दिखने वाली चपटी मछली,
और उसके ठीक नीचे तल में समुंद्री रत्नज्योतियाँ।
कहना ज़रूरी नहीं रह गया कि
जीवन, मृत्यु के बाद भी अनवरत चलता रहता है ।
इस पृथ्वी पर और अधिक पाप होने चाहिए ।
बसन्त बीत रहा है ।
'''मूल कोरियाई भाषा से अनुवाद : कुमारी रोहिणी'''
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