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{{KKRachna
|रचनाकार=नजवान दरविश
|अनुवादक=मंगलेश डबराल
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<poem>
'''1.'''

1930 के दशक में
नात्सियों को यह सूझा
कि पीड़ित लोगों को रखा जाए
गैस चैंम्बरों के भीतर ।

आज के जल्लाद हैं कहीं अधिक पेशेवर :
उन्होंने गैस चैम्बर रख दिए हैं
पीड़ितों के भीतर ।

'''2.'''

जाओ नरक में… 2010
ज़ालिमो, तुम नरक में जाओ,
और तुम्हारी सभी सन्तानें भी
और पूरी मानव-जाति भी,
अगर वह तुम्हारे जैसी दिखती हो ।

नावें और जहाज़, बैंक और विज्ञापन
सभी जाएँ नरक में
मैं चीख़ता हूँ, ‘जाओ नरक में…’

हालाँकि मैं जानता हूँ अच्छी तरह
कि अकेला मैं ही हूँ
जो रहता है उधर ।

'''3.'''

लिहाजा मुझे लेटने दो
और मेरा सर टिका दो
नरक के तकियों पर ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
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