भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं मारी जाऊँगी / अनामिका अनु

754 bytes added, 06:05, 26 नवम्बर 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं उ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं उस भीड़ के द्वारा मारी जाऊँगी
जिससे भिन्न सोचती हूँ

भीड़ सा नहीं सोचना
भीड़ के विरूद्ध होना नहीं होता है
ज्यादातर भीड़ के भले के लिए होता है
ताकि भीड़ को भेड़ की तरह
नहीं हाँका जा सके

यह दर्ज फिर भी हो
कि
भिन्न को प्रायः भीड़ ही मारती है।
</poem>
80
edits