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|रचनाकार=दिनेश शर्मा
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}}
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<poem>
हरपल शिकवा और शिकायत
मानो जैसे एक रिवायत
अपनी गरज मिटाने खातिर
करते उसकी ख़ूब हिमायत
खाना पीना औ जीना, बस
दी किसने ये ख़ास हिदायत
मां ने कितनी बार कहा है
दुख में आती काम किफायत
अपनों की कब मानी तुमने
अपने घर-सा नहीं विलायत
</poem>
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हरपल शिकवा और शिकायत
मानो जैसे एक रिवायत
अपनी गरज मिटाने खातिर
करते उसकी ख़ूब हिमायत
खाना पीना औ जीना, बस
दी किसने ये ख़ास हिदायत
मां ने कितनी बार कहा है
दुख में आती काम किफायत
अपनों की कब मानी तुमने
अपने घर-सा नहीं विलायत
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