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<poem>
हरपल शिकवा और शिकायत
मानो जैसे एक रिवायत

अपनी गरज मिटाने खातिर
करते उसकी ख़ूब हिमायत

खाना पीना औ जीना, बस
दी किसने ये ख़ास हिदायत

मां ने कितनी बार कहा है
दुख में आती काम किफायत

अपनों की कब मानी तुमने
अपने घर-सा नहीं विलायत
</poem>
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