735 bytes added,
18:11, 11 दिसम्बर 2024 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हरपल शिकवा और शिकायत
मानो जैसे एक रिवायत
अपनी गरज मिटाने खातिर
करते उसकी ख़ूब हिमायत
खाना पीना औ जीना, बस
दी किसने ये ख़ास हिदायत
मां ने कितनी बार कहा है
दुख में आती काम किफायत
अपनों की कब मानी तुमने
अपने घर-सा नहीं विलायत
</poem>