भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नियति अभागी / गरिमा सक्सेना

1,337 bytes added, 16:10, 24 दिसम्बर 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गरिमा सक्सेना
|अनुवादक=
|संग्रह=कोशिशों के पुल
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
हमने एकाकी रहने की
नियति अभागी पायी

अभिनंदन के लंबे-चौड़े
छंद न हम गा पाये
इसीलिये आँखों में हम
तिनके-सा खलते आये
गाँठों को सुलझाने में ही
उलझ-उलझ हम टूटे
जितना कसकर पकड़ा हमने
उतने रिश्ते छूटे

भरे उजाले में भी अब तो
साथ नहीं परछाई

अधिकारों की वसीयतों को
त्याग चुके हम कब के
भ्रम में सोये हुए नहीं हैं
जाग चुके हम कब के
तर्कों के तरकश ने लेकिन
सारे सच झुठलाये
आग लगाने वाले चेहरे
कहाँ सामने आये

हाथ उसी के जले हमेशा
जिसने आग बुझायी
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,612
edits