भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गरिमा सक्सेना
|अनुवादक=
|संग्रह=कोशिशों के पुल
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
आज तलक भी फटे हुए हैं
प्रेमचंद के जूते

‘सोज़े-वतन’ देखकर रोता
आज देश की हालत
पूँजी है जन की अधिनायक
करती कलम वकालत

छुई-मुई सब हो जाते हैं
सत्य-मर्म को छूते

अब भी गोबर नहीं समझता
झुनिया की लाचारी
अलगू, जुम्मन रोज़ कर रहे
दंगे की तैयारी

अब भी लाठी ज़ोर दिखाती
फूटतंत्र के बूते

बदल-बदल कर रूप सामने
खड़ा पूस का कंबल
होरी का गोदान अभी तक
खोज रहा जीवन-हल

प्रासंगिक दुख रहे हमेशा
पर सुख रहे अछूते

</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,612
edits