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उम्र के सोपान / गरिमा सक्सेना

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<poem>
तोतले थे बोल जो
आकार
अपना गढ़ रहे हैं

सीख ए, बी, सी,
ककहरा
वाक्य गढ़ना चाहते अब
माँ, बुआ,
पापा सहित
कुछ नया कहना चाहते अब

डगमगाते थे क़दम जो
दौड़
आगे बढ़ रहे हैं

दंतुरित मुस्कान से
वे जानते हैं
मन लुभाना
जानते हैं
तोतले संवाद से
जी को चुराना

हाव-भावों में
छपे अक्षर
निरंतर पढ़ रहे हैं

नित चपलता से नया कुछ
सीखना,
सबको बताना
तोड़ना कुछ,
जोड़ना कुछ
कुछ नया करके दिखाना

उम्र के सोपान
नित प्रतिमान गढ़कर,
चढ़ रहे हैं।

</poem>
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