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पैसा तो खुशामद में, मेरे यार बहुत है / 'अना' क़ासमी
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15:50, 30 दिसम्बर 2024
बेताज हुकूमत का मज़ा और है वरना
मसनद
<ref>सिंहासन </ref>
के लिए लोगों का इसरार बहुत है
मुश्किल है मगर फिर भी उलझना मिरे दिल का
साए के लिए एक ही दीवार बहुत है
</poem>
{{KKMeaning}}
वीरेन्द्र खरे अकेला
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